Wednesday, October 4, 2023

खुद को खुद में ढूंढ रहा

हर आहट से पूछ रहा

दौर ये कैसी दौर रही

ऐ जिन्दगी अब तू ही बता।


पाया क्या और खोया क्या

मोती चुगने जब तू चला

मोती मिली तो सीप नहीं

छाया है पर धूप नहीं 


दर्पण में जब देखा खुद को 

धुंधली सी तस्वीर मिली 

पा लिया जो सपना था

खो गया जो अपना था।


मन दर्पण जब देखा मैंने

ख़ुद को न पहचान सका

दौर ये कैसी दौर रही

ऐ जिन्दगी अब तू ही बता।


बचपन की मीठी झोंकों से

जीवन की इस बेला तक

कितने यादें लूट गई

कितने सपने छूट गये।


पल दो पल के आंगन में

लम्बी लम्बी कहानी है 

पीछे मुड़कर देखो तो

जीवन बहता पानी है 


जीवन के खोये नग्मे भी

अपनी ही जिन्दगानी है

ढूंढ के ला दो कोई फिर

कर दी ऐसी कौन खता


सोचो समझो जानो तो

ये जीवन एक कहानी है 

नाते, रिश्ते, इश्क़, खफा 

खट्टी मीठी जिंदगानी हैं 


अपने खुद की परछाई में 

बीते किस्से बस खोज जरा 

दौड़ ये कैसी दौड़ रही

ऐ जिन्दगी अब तू ही बता।





Tuesday, February 23, 2021

कहानी -आखरी दुखः

आज जब नरेंद्र घर से निकला तो यह सोच कर रखा था कि मैं आज किसी की नहीं सुनूंगा, अगर बॉस ने कुछ भी कहा तो इस्तीफा दे दूंगा अगर साथ के किसी ने कुछ कहा तो उसकी पिटाई तक कर दूंगा। ऑफिस से निकलने के पहले उसकी पत्नी से काफी लड़ाई हुई थी, उसने गुस्से में टिफिन भी नहीं लिया था । आज वह काफी परेशान था ऐसा लग रहा था कि संसार की सारी मुसीबतों ने सिर्फ उसे ही घेर रखा है। ऑफिस की गंदी राजनीति, मां-बाप की बीमारी और पत्नी का उसे ना समझ पाना उसे काफी दुखी कर रखा था । वह अपनी बात किस से कहें उसे समझ नहीं आ रहा था । दोस्त तो उसके कई थे परंतु जो उसे समझ सके ऐसा एक भी नहीं था । लगता सभी उसके साथ है पर वह अन्दर से अकेला था। शाम में जब वो ऑफिस से आया तो चुपचाप ड्राइंग रूम में बैठकर टीवी देखने लगा, पत्नी ने एक कप चाय सामने लाकर रख दिया और बाहर जाकर बैठ गई।  उसने चाय पी और कुछ सोच कर बाहर निकल गया और पास के पार्क में एक बरगद के पेड़ के नीचे जाकर बैठ गया। हवा में डोलते पेड़ की साख और उस पर लगे पत्ते और पेड़ की छांव उसे काफी सुकून दे रहे थे। पेड़ के ऊपर बैठे पक्षियों की चहचहाहट और हवा की सांय-सांय की आवााज उसे काफी अपना सा लग रहा था। एकाएक वह उठा और उस पेड़ को गौर से देखने लगा । फिर उसने उस पेड़ के मोटे तने को छुआ और उसे हल्की सी थपकी दी। पता नहीं उसके मन में क्या ख्याल आया कि उसने उस पेड़ से कहा, "तुम्हारे छांव में मुझे सबसे ज्यादा सुकून मिल रहा इसीलिए मैं आज से तुम्हें अपना दोस्त बना रहा हूंं । मेरा कोंंई ऐसा साथी नहीं जिसे मैं अपना दुख बता सकूं लेकिन आज से मैं तुम्हें अपना हर दुख बताया करूंगा।" इतना कहकर वह वहां से चला गया। 

अगली शाम वह ऑफिस से आने के बाद पुनः उसी पेड़ के नीचे बैठ गया । आज की छांव उसे और भी सुखद लग रही थी । उसने उस पेड़ को अपनी दिन भर की सारी बातें बताई। उसने बताया कि उसकी ऑफिस में कितनी दिक्कतें हैं, कंपनी आजकल घाटे में चल रही और नौकरी जाने का भी खतरा है। ऑफिस की सभी अच्छी-बुरी बातें उसने उस बरगद के पेड़ से कह सुनाया । आज उसे काफी शांति महसूस हो रही थी और काफी सुकून भी । अब तो उसकी यह आदत बन चुकी थी हर शाम ऑफिस से आ कर उस पेड़ के नीचे बैठना और अपने सारे दुख उससे कह डालना । उसे अपना एक साथी मिल गया था । वैसा साथी जिससे वह सब कुछ कह सकता अपनी सारी पीड़ा दुख और मन की बातें। उस पेड़ के पास आते ही उसे लगता वह पेड़ भी उससे कुछ कह रहा , उसके आते ही वह पेड़ भी शायद थोड़ा झूमने मचलने लगता । यह उसकी सोच सोच थी या सच पता नहीं ।

आज वह फिर उस पेड़ के पास आया लेकिन आज वह थोड़ा ज्यादा दुखी था ।उसने पेड़ को बताना शुरू किया "मेरे दोस्त मुझ पर मुसीबतों का पहाड़ टूट गया है, आज सुबह ही पत्नी से काफी झगड़ा हुआ उसके बाद जैसे ही ऑफिस पहुंचा तो फोन आया की मां बाबूजी की दवा की डोज बढ़ गई हैं और इलाज बढ़ने से पैसे की जरूरत काफी बढ़ गई है। जब ऑफिस से निकलने का वक्त हुआ तो मालूम हुआ कि कंपनी दिवालिया हो गई है और हम सब की नौकरी जाती रही है ।अब इतने सारे दुख लेकर मैं कहां जाऊं, किससे कहूं। मुझे तुम्हारे सिवा कोई दिखा नहीं , कोई ऐसा साथी नहीं जिससे मैं यह सब कह सकूं । मुझे शायद यह शहर छोड़ना पड़े और मैं सब कुछ बेच कर अपने गांव वापस चला जाऊं । पता नहीं हमारी तुम्हारी मुलाकात कब तक की है यह कहकर वह वापस घर चला आया । इसके बाद वह 3 दिन उस पार्क में नहीं गया । खुद की उलझन इतनी बड़ी थी कि वह उसी में उलझा रहा । चौथे दिन वह फिर पार्क में उसी पेड़ के पास गया और उसके नीचे बैठकर फूट-फूट कर रोने लगा और उस बरगद के पेड़ को बताने लगा, "मेरे दोस्त मैं शहर छोड़ कर जा रहा हूं , मैंने अपना मकान बेच दिया है नौकरी मेरी छूट गई है । मैं कुछ जमा पूंजी लेकर कल सबके साथ अपने गांव जा रहा । वहीं पर कुछ व्यवसाय करूंगा और अपने को स्थिर करूंगा । तुम मेरे सबसे अच्छे साथी हो तुम्हें मैं काफी याद करूंगा । हां मेरा कुछ हिसाब-किताब बकाया रह गया है ठीक 3 महीने बाद 1 दिन के लिए मैं इस शहर में आऊंगा । जब मैं आऊंगा तो तुमसे जरूर मिलूंगा तुम मेरे लिए प्रार्थना करना।  यह कहकर वह रोते हुए तेज कदमो से वहां से चला गया। 

नरेन्द्र ने अपने गांव जाकर कारोबार शुरू किया । अपना घर, अपने लोग उसका कारोबार 2 महीने में ही रफ्तार पकड़ने लगा। माता-पिता की तबीयत भी अपने घर की खुशबू पाकर सुधरने लगी। ठीक 3 महीने बाद वह अपने पुराने शहर वापस आया। उसे कुछ लेनदेन के हिसाब किताब करने थे। सारे काम निपटा कर वह वापस उसी पार्क में आया और बरगद के पेड़ के नीचे आकर उसे अपनी कहानी सुनाने लगा, "मेरे दोस्त मैंने तुमसे वादा किया था कि 3 महीने बाद मैं जब आऊंगा तो तुमसे जरूर मिलूंगा। गांव जाकर मैंने अपना कारोबार शुरू किया , 3 महीने में ही सब कुछ काफी अच्छा हो गया, माता-पिता भी स्वस्थ हो गए, मेरा कारोबार भी ठीक-ठाक जम गया । मेरी आर्थिक स्थिति भी सुधरने लगी, सब कुछ काफी सुंदर हो गया। मुझे तुम्हारी बहुत याद आती थी । एक तुम ही थे जिसे मैं अपने दिल की साभी बातें कहता था।  लेकिन ये क्या, 3 महीने पहले तो तुम काफी हरे भरे थे, तुम्हारे डाल पर काफी चिड़िया बैठकर अठखेलियां खेला करती थी। लेकिन आज तो तुम बिल्कुल पहचान में नहीं आ रहे। तुम्हारे सारे पत्ते सूख कर झड़ चुके हैं, यह तुम्हें क्या हो गया है।"     यह कहकर वह उसे छूकर महसूस करने लगा। पूरे पेड़ को देखने लगा। उसके डाल और उस पर लगे सूखे और निर्जिव पत्ते, बिना चिड़ियों के चहचाहट और सूनापन उसे उदास कर रहा था । नरेंद्र वहां से उठकर जाने लगा लेकिन जाने से पहले फिर कहा, "ठीक है, तो मत बताओ । मैंने सिर्फ तुम्हें अपना समझा था तभी मैंने अपनी सब बातें तुमसे कहीं। तुम वैसे भी मेरे कौन हो। ठीक है मैं जा रहा, आज हमारी अंतिम मुलाकात है।आज के बाद मैं इस शहर में कभी नहीं आऊंगा।"  यह कहकर वह जाने लगा। जैसे ही वह पेड़ से थोड़ी दूर गया कि उसे आवाज सुनाई दी, "रुको मित्र" ।  वह पलट कर देखने लगा लेकिन उसे कोई दिखाई नहीं दिया।  फिर वह जैसे ही चलने को हुआ, आवाज आई, "मित्र मैं हूं तुम्हारा दोस्त , जिसे तुम इतने दिन अपने सुख-दुख की कहानी कहते आए हो।" नरेंद्र ठिठक कर रुक गया और उस पेड़ को देखने लगा तभी उस पेड़ से फिर आवाज आई, "मित्र तुम्हारी कहानी सुनकर मुझे काफी तकलीफ होती थी। मुझे लगता था काश मैं तुम्हारी कुछ मदद कर पाता। जिस दिन तुम मुझे आखरी बार मिलने आए थे उस दिन मैंने तुम्हारे सारे दुख ओढ़ लिए थे । मैंने ईश्वर से प्रार्थना की थी कि तुम्हें हर सुख मिले और तुम्हारे सभी दुख मुझे मिले। मैं तो उसी दिन प्राण त्याग देता, लेकिन तुमने कहा था कि 3 महीने बाद तुम आओगे । इसीलिए मैंने अपने प्राण बचा रखे थे।"  तभी नरेंद्र पूरे पेड़ को गौर से देखता है तो पाता है कि पूरा पेड़ सुखा है बस गिनती के दो चार पत्ते हरे थे।  तभी फिर आवाज आई "मित्र अब मैं अपने प्राण त्याग रहा हूं तुमसे कभी मुलाकात नहीं होगी। यह हमारी आखिरी मुलाकात है । तुमने मुझे अपना दोस्त समझा मुझसे हर दुख कहे, मुझ पर विश्वास किया मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सका, शिवाय ईश्वर से प्रार्थना करने के । तुम खुश रहना और अपने दोस्त को कभी मत भूलना।"  इसके बाद आवाज आनी बंद हो गई तभी जैसे नरेंद्र की तंद्रा भंग हुई तो देखता है उस पेड़ के 2-4 हरे पत्ते भी सूख चुके थे और उस पेड़ से झड़ रहे थे । वह स्तब्ध सा सब देखता और सुनता रहा। अपने दोस्त के त्याग से वह जैसे अभिभूत हो गया।  पेड़ से लिपटकर वो पागलों की तरह रोने लगा। उसके आखिरी दुख को भी इस पेड़ ने आत्मसात कर लिया था । उसका एकमात्र दोस्त भी आज उसे छोड़ कर जा चुका था।   नरेंद्र बोझिल कदमों से धीरे धीरे अपनी मंजिल की ओर लौटने लगा।


                              लेखक – अभय सुमन "दर्पण"






Thursday, July 30, 2020

kahani - गर्भवती

"क्या इस किट से मालूम हो जायेगा की वो गर्भवती है या नहीं ", विमल ने थोड़ा संशय से दुकानदार से पूछा 
" हाँ सर, 100 परसेंट, मेरी गारंटी है, आज तक कभी फेल नहीं हुआ" , दुकानदार ने मुस्कुराते हुए कहा 
"अच्छा तो मुझे कितने किट लेने होंगे, मेरा मतलब कितनी बार टेस्ट करना होगा", विमल ने पूछा 
"कितनी बार? अरे साहब बस एक बार", दुकानदार ने कहा 
"अच्छा " , विमल ने आश्चर्य से पूछा। 
तभी उस मेडिकल शॉप पर एक और ग्राहक आ गया। विमल ने झट से उस किट को अपने दोनों हाथो के बीच छिपा लिया और धीरे से अपनी ओर करके पॉकेट में रख लिया। दुकानदार को उसके पैसे देकर धड़कते दिल से अपने घर की और चल दिया। रास्ते में तमाम ख्याल उसके दिमाग में चल रहे थे। शादी से लेकर आज के  हर उस पल तक की जिसमे वो एक बेफिक्र युवक से एक जिम्मेदार पुरुष बनने जा रहा था। दो साल पहले उसकी शादी हुई थी घर वालो की पसंद से। शादी के पहले सिर्फ एक बार मिला था वो भी पुरे परिवार के साथ उससे। शायद छोटे शहर के संस्कार और समय की कमी। बारहवीं पास करते ही सेना में चला गया और फिर कमीशंड अधिकारी बनने के बाद तो और छुट्टी की किल्लत। 
"सुनो कहां जा रहे, घर तो यही है " सुनीता ने हँसते हुए जोर से कहा 
"अरे हाँ, देखो मैं अपनी धुन में चला जा रहा था और घर भी भूल गया" , विमल ने मुस्कुराते हुए कहा और घर के अंदर चला आया। 
"ले आये जांचने वाली किट " सुनीता ने गहरी नजर से विमल को देखते हुए कहा। 
"हाँ जानेमन, लेकिन कल सुबह तक के लिए इंतज़ार करना पड़ेगा ", विमल ने नजदीक आते हुए कहा और उसे बांहो में भर लिया। 
"कल सुबह तक क्यों, अभी क्यों नहीं ", सुनीता ने थोड़ा आश्चर्य से पूछा। 
"ऐसा ही कहा है दुकानदार ने", विमल ने अपने दाढ़ी को उसके गालो पर चुभाते हुए कहा। 
"अरे हटो भी, मेरी जान सूख रही और तुम्हे रोमांस सूझ रहा", सुनीता ने थोड़ा शरमाते हुए विमल को पीछे कर दिया। 
"अरे इसमें क्या घबराना, खैर छोरो मैं ऑफिस होकर आता हूँ, कुछ काम है दो तीन घंटे लगेंगे ", कहते हुए विमल तैयार होने चला गया और तैयार होकर ऑफिस निकल गया। 
उसके जाने के बाद सुनीता याद करने लगी जब वो विमल से पहली बार मिली थी। दोनों परिवारों को मिलाकर कम से कम पच्चीस तीस लोग थे उस समय जब उसके घर ये देखने आये थे। लम्बा कद, छोटे बाल, हलकी मूछें, मुस्कुराता चेहरा और गठीला बदन, शायद आर्मी में काफी कसरत कराई जाती हो उसने मन ही मन में ये सोचा था। पहली नजर में ही वो भा गए थे, अकेले में मिलने पर उन्होंने बस नाम और पढ़ाई ही पूछी थी। एक महीने में ही सारी रस्म और फिर शादी, शायद उनके पास छुट्टी की कमी थी। खैर,शादी के तुरंत बाद अपने साथ ले आये थे और दो साल में तीन जगह ट्रांसफर। यही सब सोचते सुनीता घर के काम में उलझ गयी और शाम का इंतजार करने लगी। वैसे उसे तो इंतज़ार कल सुबह का है जब वो जानेगी की वो गर्भवती है की नहीं। 
आज विमल को आने में देर हो रही थी। लेकिन वो तो कह कर सिर्फ दो तीन घण्टे के लिए गए थे।  लगभग एक बजे दोपहर में निकले थे, पांच बजे तक तो आ जाना चाहिए था।  अब तो आठ बजने वाले हैं, सुनीता का मन घबराने लगा। आज हर मिनट घंटो जैसा लग रहा था। तभी फ़ोन बजा, फोन पर विमल था  "डार्लिंग थोड़ी देर हो जाएगी तुम खाना खा लो।"
"अरे आज तो आपको जल्दी आना था, मन कितना घबरा रहा मेरा", सुनीता ने रुआंसी होते हुए कहा। 
"बस जान दो-तीन घंटे और लगेंगे तुम खाना खा लो और सो जाओ, मेरे पास दूसरी चाभी है मैं आ जाऊंगा" विमल ने कहा और फोन रख दिया। 
सुनीता थोड़ी उदास हो गयी और बेड पर जा कर लेट गयी। उसे कल सुबह की भी फ़िक्र हो रही थी, पता नहीं क्यों उसे एक अंजाना सा भय सता रहा था। यही सब सोचते सोचते उसकी आँख लग गय, आँख खुली तो देखी  विमल उसे जगा रहा था।  
"अरे आप आ गये, आइये खाना लगा दूँ" सुनीता ने कहा 
" हाँ भूख तो बहुत तेज लगी है। तुमने खाया ? " विमल ने पूछा। 
"नहीं मैंने भी नहीं खाया, आपका इंतज़ार करते करते सो गयी थी" सुनीता ने थोड़े उदासी से कहा। 
" कोई बात नहीं, अब हम खाएंगे पियेंगे तो कल सुबह के बाद" विमल ने स्टाइल से कहा और हंसने लगा। 
"अच्छा जी ", सुनीता ने भी मुस्कुराते हुए कहा 
" जी हाँ, सुबह ये किट बताएगा की हम दो ही रहेंगे या तीन होने वाले हैं" , विमल ने मुस्कुराते हुए कहा। 
"फ़िलहाल तो खाना पीना हो जाये, हम दोनों को भूख लग रही है " सुनीता ने कहा 
खाना खाते लगभग बारह बज चुके थे और सोने की दोनों को बिलकुल इच्छा नहीं थी। नींद भी कोसों दूर थी दोनों की आँखों से। सुबह की हाँ या ना के एहसास में तरह तरह के विचार दोनों के मन में आ रहे थे। अपनी अपनी उधेरबुन और आँखों में उनसे बुने सपने। बस ये लग रहा था की जल्दी से सुबह हो जाये और जीवन में नए परिवर्तन को महसूस किया जाये। यही सब सोचते दोनों की आँख लग गयी। सुबह छह बजे के आसपास विमल की आँख खुली तो सुनीता को बेड पर नहीं पाया।  
शायद चाय बनाने गयी होगी, ये सोचते विमल बेड से नीचे उतरा। तभी उसे किट का ध्यान आया, बस पहली यूरिन की दो बुँदे ही तो उस किट पर रखनी है और मालूम हो जायेगा गर्भवती है की नहीं। ये सोचते ही उसकी आँखे झट से खुल गयी।  तभी देखा, बाथरूम से सुनीता निकल रही चुपचाप।  
"क्या हुआ , टेस्ट कर लिए " विमल ने पूछा। 
"हाँ" ,सुनीता ने धीरे से कहा 
"क्या हुआ ", विमल ने उत्साह से पूछा 
"पहले चाय पी लो, तब बताती हूँ ", सुनीता ने कहा 
"अरे कैसी बात कर रहे, मैं पागल हो रहा सुनने के लिए ", विमल ने थोड़ा गुस्से से कहा 
"अच्छा इधर कान लाओ ", सुनीता ने हलकी मुस्कान से कहा 
"हाँ कहो ", विमल ने पास आकर कहा 
"सुनो, तुम्हे कुछ महीने मुझसे दूरी बनाकर रखना होगा" सुनीता ने कहा 
"मगर क्यों", विमल ने थोड़ा झल्ला कर पूछा 
"क्योंकि किट पास हो गया है और हम दो से तीन बनने जा रहे" सुनीता ने शरमाते हुए कहा 
"तो ये बात है" विमल ने हँसते हुए कहा और सुनीता को गोद  में लेकर गोल गोल घूमने लगा। 
इस एक छोटे से पल ने उनकी जिंदगी को काफी बड़ा बना दिया था।

                                                  - अभय सुमन दर्पण 









Friday, July 3, 2020

मन की तालाश

बहुत मुश्किल होता है वो पल,
जब मन, एक मन की तालाश करता है
एकांत मे जब निज मन
खुद, खुद से बाते करता है
ढूंढता है फिर एक और मन
मन की व्यथा कहने, अनकही
समग्र एहसास समेटे अन्दर
अंर्तनाद सहेजे निज उर के भीतर
हृदय की चित्कार सुन बस
मन, मन की पुकार करता है

बहुत मुश्किल होता है वो पल,
जब मन, एक मन की तालाश करता है

खोल रख दे इस मन के राज
उलझी सुलझी इस मन की बात
एक मन जो दर्पण हो अपना
मिल जाए तो तृप्त हो रुह अपना
मुश्किल बहुत उस मन का मिलना
मन की बात समझता जो अपना
लाखो की भीड़ मे खड़ा तन्हा इंसान
ये मन, उस मन को ढूंढता फिरता है

बहुत मुश्किल होता है वो पल,
जब मन, एक मन की तालाश करता है





Tuesday, January 28, 2020

दोस्तों, हम आप पाकिस्तान को जिस कारण से जानते हैं, पाकिस्तान वैसा नहीं था। ये पाकिस्तान कोई 1947 में बना देश नहीं है बल्कि ये 5000 साल पुरानी सभ्यता, संस्कृति वाला देश है। इसका अपना एक इतिहास है, अपनी धरोहर है। इसी धरती पर तक्षशिला है, कटासराज मंदिर है, शारदा पीठ है तो हिंगलाज मंदिर है। ये चाणक्य की धरती है और भगवान राम के पुत्र लव जिसके नाम पर बसा शहर लाहौर है उनकी धरती है। आज इस देश का जो भी स्वरुप हो, इस देश के बारे में जो भी धारणा हो, जो भी सोच हो, पर ये हमेशा ऐसा नहीं था। यहाँ कभी बेदो की ऋचाये गूंजा करती थी तो कहीं अध्यात्म और योग हुआ करते थे। मैं आपको यहाँ के एक ऐसे ऐतिहासिक स्थल की जानकारी दे रहा जिसका अस्तित्व हजारों सालो से है।

आज मैं आपसे बात कर रहा हूँ शारदा पीठ के बारे में जो कभी शिक्षा का बहुत बड़ा केंद्र हुआ करता था। आज के पाक नियंत्रित कश्मीर में एक जगह है मुज़फ़्फ़राबाद। उसी मुज़फ़्फ़राबाद जिले की सीमा के किनारे से पवित्र कृष्ण-गंगा नदी बहती है। ये वही नदी है जिसमे समुद्र मंथन के पश्चात शेष बचे अमृत को असुरो से छिपकर रखा गया था। इसके बाद ब्रह्मा जी ने इस नदी के किनारे माँ शारदा का मंदिर बनाकर उन्हें वहां स्थापित किया था। तब से सारा कश्मीर माँ शारदा की आराधना करते हुए कहता है "नमस्ते शारदादेवी कश्मीरपुरवासिनी / त्वामहंप्रार्थये नित्यमविदादानम च देहि में"। किसी समय चिकित्सा, खगोल शास्त्र, ज्योतिष, दर्शन, विधि, न्याय शास्त्र, पाककला, चित्रकला और भवन शिल्प कलाओ का भी प्रसिद्ध केंद्र था कश्मीर। माँ शारदा के आशीर्वाद के कारण यह जगह कभी विद्वता और बहुत बड़े विद्यापीठ के लिए जाना जाता था। यह एक शक्ति पीठ भी है जो हिन्दुओं के पूज्य अठारह शक्ति पीठों में से एक है। इसकी अपनी एक लिपि हुआ करती थी और यहां पर विश्व की सबसे बड़ी लाइब्रेरी हुआ करती थी। 

श्रीनगर से लगभग सवा सौ किलोमीटर की दुरी पर बसा यह शारदापीठ, जहाँ कभी विशाल मंदिर हुआ करते थे आज जीर्ण शीर्ण अवस्था में खँडहर के रूप में मौजूद है। यहीं पर चरक-संहिता लिखी गई, यहीं पर शिव-पुराण, कल्हण की राजतरंगिणी, सारंगदेव की संगीत रत्नाकर लिखी गयी। शैव-दार्शनिको की लम्बी परंपरा यहीं से शुरू हुई। ह्वेनसांग ने लिखा है की शारदापीठ में उसने ऐसे-ऐसे विद्वान देखे हैं जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती। यहीं पर एक बहुत बड़ा विद्यापीठ भी था,जहाँ सारी दुनिया भर से विद्यार्थी ज्ञानार्जन करने आते थे। इसकी ख्याति तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय की तरह ही थी। कहा तो ये जाता है की इस स्थल पर एक भव्य मंदिर का निर्माण सम्राट अशोक ने 287 BC  में किया था और माँ शारदे जिसे हम विद्या की देवी सरस्वती भी कहते हैं, उसे समर्पित किया था। शारदा पीठ कश्मीरी वास्तुकला की शैली में बना मंदिर है जो लाल बलुआ पत्थर से बना है। यह एक पहाड़ी पर है और पत्थर की सीढियों के द्वारा वहां जाया जाता है। अभी यह खंडहर के रूप में है लेकिन देखने से मालूम होता है किसी समय यहाँ पर एक विशाल संरचना मौजूद थी।                         

आज भले यह जगह खण्डहर हो चूका है, इसकी सुधी लेने वाला कोई नहीं, पर किसी समय सारी दुनिया से लोग शारदापीठ के दर्शन करने जाते थे। श्रीनगर से पैदल जा कर दर्शन करने की परंपरा थी। आज हिन्दुओ के हरेक जाति में शांडिल्य गोत्र पाए जाते है। दरअसल कश्मीर में एक निम्न जाती के घर एक बालक शांडिल का जन्म हुआ था। वो बड़े प्रतिभावान थे। उन्होंने माँ शारदे की आराधना की तो माँ शारदे ने उन्हें दर्शन दिया और नाम दिया ऋषि शांडिल्य। आगे चलकर वो बहुत बड़े ज्ञानी बने और कई ग्रंथो की रचना की। भारत के कई हिस्सों में यज्ञोपवीत संस्कार के समय बटु को कहा जाता है की तू शारदा पीठ जा कर ज्ञानार्जन कर। वो सांकेतिक रूप से शारदापीठ की दिशा में सात कदम जाता है और सात कदम पीछे आता है। इसका मतलब ये है की वो शारदा पीठ जा कर विद्या ले चूका है। 

इस जगह का दुर्भाग्य कहें की कभी जहाँ पर बच्चे पठन पाठन किया करते थे, ज्ञान अर्जित कर देश दुनिया को नयी दिशा देते थे। आज वहां के बच्चे बंदूके उठाकर लोगों को मरने मारने की कसमे खाते हैं। वैसे यहाँ के स्थानीय लोग इसे शारदा माई की मंदिर ही कहते है और चाहते हैं की ये पुनः आबाद हो। भारत और पाकिस्तान के सरकारो से निवेदन है की दोनों देशो की इस साझी विरासत को फिर से पुनर्जीवित करें और गंगा जमुनी तहजीब की नई मिसाल पेश करें।

                                - अभय सुमन दर्पण 


Sunday, January 26, 2020

कविता - हम भगवान के बन्दे हैं

हम भगवान के बन्दे हैं   
अल्लाह के बन्दे हैं 
करने दो उन्हें सियासत
जिनके ये धंधे हैं 

वो राम भी अपनी है 
वो श्याम भी अपनी हैं 
ख्वाजा भी अपने हैं 
नानक हमारा है 

दिल्ली भी प्यारा है 
लाहौर हमारा था 
तक्षशिला है अपनी 
ढ़ाका भी न्यारा है 

बांटा जो तुमने सरहद 
लाखो लाशे थी बिखरी
पूछा तुमने हमसे क्या 
जो लहू से सींची थी  

थी एक ही अपनी मिट्टी 
है एक ही अपनी संस्कृति 
क्यूँ बाँट दिया ये धरती 
जो इतिहास पुराना  है 

हम भगवान के बन्दे हैं
अल्लाह के बन्दे हैं 
करने दो उन्हें सियासत
जिनके ये धंधे हैं 

पायी थी तुमने गद्दी 
नेहरू-जिन्ना थे राजा 
पहना था जो गले में 
मुंडो की माला थी 

सन सैतालिस का मंजर 
खून के प्यासे दोनों 
फैलाया जो जहर था 
वो आज भी जिन्दा है 

बजती मंदिर की घंटी 
अजान की तान से जगते
गुरुबाणी है अमृत 
चर्च के घंटे हैं 

ऐसा देश है अपना 
छोरो मरना और लड़ना 
एक ही खून है हममें 
क्या पंडित क्या मौला 

हम भगवान के बन्दे हैं
अल्लाह के बन्दे हैं 
करने दो उन्हें सियासत
जिनके ये धंधे हैं 










































Saturday, January 4, 2020

बीस की जवानी
चालीस की रवानी
साठ का सियापा
अस्सी का बुढापा
सौ की गिनती
20-20 चढती
इस 2020 में
अपनी उम्र ढूंढें
कितना खोया-पाया
इस जीवन की बूंदे
मां-बाप की गोद या
भाई-बहन को मिस
लंगोटिया यार या
पहले प्यार की टीस
कालेज कैंपस मे
कट वाली चाय
कुछ गलियां,चौराहे
तो कुछ खोये ख्वाब
नववर्ष 2020 में
हैं जीवन के दो हिस्से
एक है अंधी दौर और
कुछ पुराने किस्से
कुछ 20 अगर इसे देना
तो कुछ 20 उसे देना
कुछ दुनियादारी कर लेना
कुछ मन की भी सुन लेना।


अभय सुमन "दर्पण"